Sarfaraz

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दरबारे मुस्तुफ़ा में

🌹🌹🌹🌹 ग़ज़ल 🌹🌹🌹🌹

अ़दना हो या के आ़ली दरबारे मुस्तुफ़ा में।
बनती है सबकी बिगड़ी दरबारे मुस्तुफ़ा में।

मज़हब हो कोई सा भी मसलक हो कोई सा भी।
मिलती है सबको रोज़ी दरबारे मुस्तुफ़ा में।

आब ओ हवा हो या के फल फूल ख़ार पत्थर।
हर एक शय है शाफ़ी दरबारे मुस्तुफ़ा में।

खुलते हैं जिससे दफ़्तर ऐश ओ तरब सारे।
मिलती है ऐसी चाबी दरबारे मुस्तुफ़ा में।

होती है उनकी जायज़ हर इक मुराद पूरी।
जाते हैं जो भी ह़ाजी दरबारे मुस्तुफ़ा में।

वो रह़मत ए जहां हैं आते काम सबके।
बनती है बात सबकी दरबारे मुस्तुफ़ा में।

इ़ल्म ओ अदब से अपने भरते थे पल में दामन।
आते थे जो सह़ाबी दरबारे मुस्तुफ़ा में।

हमने फ़राज़ देखा आसी हो या के अशरफ़।
भरती है सबकी झोली दरबारे मुस्तुफ़ा में।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ पीपलसाना मुरादाबाद।

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7 Comments

Rajeev pandey

01-Jun-2022 09:55 AM

Nice

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Swati chourasia

31-May-2022 07:56 PM

बहुत खूब 👌

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Rahman

31-May-2022 06:16 PM

Osm

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